आयुर्विज्ञान की वैकल्पिक पद्धतियां
1. आयुर्वेद जीवन का ज्ञान है जो मानव जीवन के लिए दुख के उत्तरदायी कारकों पर विस्तृत विचार करता है। साथ ही प्राकृतिक और हर्बल उत्पादों का इलाज में उपयोग कर पूर्ण जीवन काल हेतु स्वस्थ जीवन के लिए उपाय निर्देर्शित करता है। आयुर्वेद - अधिक जानकारी (बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं)।
2. योग भौतिक मानसिक, नैतिक और आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ जीवन जीने की कला है। यह किसी भी प्रकार से प्रजाति, आयु, लिंग, धर्म, जाति अथवा धार्मिकता से बंधा हुआ नहीं है और उन सभी के द्वारा इसका पालन किया जा सकता है जो अच्छे रहन-सहन संबंधी शिक्षा प्राप्त करना चाहते है और सार्थक जीवन जीना चाहते है। योग - अधिक जानकारी (बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं)।
3. नैचुरोपैथी अथवा प्रकृति द्वारा देखभाल का विश्वास है कि सभी बीमारियां शरीर में दूषित तत्वों के संग्रहित होने के कारण होती हैं और यदि इसे हटाने की संभावना हो तो उपचार हो जाता है अथवा राहत मिलती है। उपचार हेतु इसमें मुख्य विधियां वायु, जल, ताप गीली मिट्टी और स्थान है। नैचुरोपैथी अथवा प्रकृति द्वारा देखभाल- अधिक जानकारी (बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं)।
4. भारत में होम्योपैथी का चलन अर्द्धशताब्दी से भी अधिक समय से है। यह देश की जड़ों और परंपराओं में इतनी अच्छी तरह घुल-मिल गई है कि इसे आयुर्विज्ञान के राष्ट्रीय पद्धतियों में से एक माना जाता है और बड़ी मात्रा में लोगों को स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसकी ताकत समग्र दृष्टिगोचर में निहित है क्योंकि यह मानसिक, भावात्मक, आध्यात्मिक और भौतिक स्तरों पर आंतरिक संतुलन का विकास कर रूग्ण व्यक्ति के प्रति दार्शनिक दृष्टिकोण अपनाती है। होम्योपैथी - अधिक जानकारी(बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं)।
5. यूनानी में निर्धारित है कि शरीर में स्वयं की रक्षा की शक्ति होती है जो व्यक्ति की संरचना अथवा स्थिति द्वारा निर्धारित सीमाओं के भीतर किसी भी व्यवधान को सही करने का प्रयास करती है। फिजीशियन केवल इस शक्ति के कार्य से आगे बढ़ने अथवा इसको रोकने के बजाय इसको बढ़ाने में सहायता करता है। यूनानी - अधिक जानकारी (बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं)।
6. सिद्धा काफी हद तक आयुर्वेद के समान है। इस पद्धति में रसायन का आयुर्विज्ञान तथा आल्केमी (रसायन विश्व) के सहायक विज्ञान के रूप में काफी विकास हुआ है। इसे औषध निर्माण तथा मूल धातुओं के सोने में अंतरण में सहायक पाया गया। इसमें पौधों और खनिजों की काफी अधिक जानकारी थी और वे विज्ञान की लगभग सभी शाखाओं की जानकारी रखते थे। सिद्धा - अधिक जानकारी (बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं)।
7. एक्यूप्रेशर में शरीर के विशिष्ट भागों पर दाब दिया जाता है अथवा खास मसाज की जाती है ताकि दर्द को नियंत्रित किया जा सके। इस थेरेपी का उपयोग रक्तस्राव को रोकने के लिए भी किया जाता है। यह पारंपरिक चीनी आयुर्विज्ञान से व्युत्पन्न है जो कि दर्द के उपचार का एक तरीका है जिसमें शरीर के विशेष बिन्दुओं पर दाब दिया जाता है, जिन्हें 'एक्युप्रेशर बिन्दु' कहा जाता है।
8. एक्युपंक्चर (बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं) आयुर्विज्ञान की प्राचीन चीनी पद्धति है जिसमें शरीर के कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर पिन चुभाई जाती है। इसका उपयोग दीर्घ स्थायी दर्द जैसे अर्थराइटिस, बरसाइटिस, सिरदर्द, एथलेटिक चोटे, संघात उपरांत तथा शल्य चिकित्सा उपरांत होने वाले दर्द के उपचार में किया जाता है। इसका उपयोग प्रतिरक्षा प्रणाली के ठीक प्रकार से कार्य न करने से संबंधित दीर्घस्थायी दर्द, जैसे सोरिएसिस (त्वचा संबंधी विकार) एलर्जी और अस्थमा के उपचार के लिए भी किया जाता है। एक्युपंक्चर के कुछ आधुनिक अनुप्रयोगों में मद्यव्यसन, व्यसन, ध्रूमपान और खान पान संबंधी विकारों जैसे विकारों का उपचार शामिल है।
9. सामान्यतया टेलीमेडिसिन से तात्पर्य चिकित्सीय देखभाल प्रदान करने के लिए संचार और सूचना प्रौद्योगिकियों का उपयोग करना है। इससे यह साधारण सी बात है कि दो स्वास्थ्य संबंधी प्रोफेशनल किसी मामले पर टेलीफोन पर चर्चा कर लें अथवा यह इतना जटिल भी हो सकता है कि दो विभिन्न देशों में चिकित्सा विशेषज्ञों के बीच वास्तविक परामर्श हेतु सैटेलाइट प्रौद्योगिकी और वीडियो कान्फ्रेंसिंग उपकरण का उपयोग किया जाए। इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग (बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं)(डीआईटी) ने भारत में टेलीमेडिसिन पद्धतियों हेतु मानक परिभाषित करने के लिए सचिव, डीआईटी की अध्यक्षता में ''सूचना प्रौद्योगिकी प्रदत्त सेवाओं के उपयोग द्वारा टेलीमेडिसिन पद्धति के कार्यान्वयन में सहायतार्थ डिजिटल सूचना का मानकीकरण (बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं)'' पर समिति के विचार विमर्श के माध्यम से पहल की है। साथ ही साथ डीआईटी ने हेल्थकेयर क्षेत्र में विभिन्न स्टेकहोल्डरों की सूचना संबंधी आवश्यकताओं की सक्षमतापूर्वक पूर्ति के लिए "स्वास्थ्य हेतु सूचना प्रौद्योगिकी मूलसंरचना की रूपरेखा" निर्धारित करने हेतु, परियोजना विधि में दूसरी पहल की है। विभाग ने भारत में टेलीमेडिसिन की प्रैक्टिस हेतु विशेष दिशानिर्देश जारी किए है।